तेजास्थली - एक पृष्ठभूमि
इतिहासकारों ने नागौर में नागवंशी शासकों का साम्राज्य होना बताया है। तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के तहत लोग छोटे-छोटे समूहों में रहते थे, जिन्हें गण कहा जाता था। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण गण नागौर से 20 किलोमीटर दूर खरनाल नाम से आबाद था, जिसके मुखिया (गण पति) धोलियां वंशी जाट श्री ताहड़देव जी थे। विक्रम संवत 1130 की माघ शुक्ला चतुर्दशी को ताहड़देव जी के घर एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसका नाम तेजपाल रखा गया। तेजपाल साहसी, निडर, गोपालक, पर्यावरण प्रेमी एवं वचन के पक्के थे। प्राकृतिक संसर्ग के कारण इन्हें कम उम्र में ही वनस्पति एवं जड़ी-बूटियों से उपचार करने का ज्ञान प्राप्त हो गया था। अपने इन्हीं गुणों के कारण कुंवर तेजपाल ने आस-पास के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी थी। अपने ससुराल (पनेर) में लूटेरों द्वारा अभागिन गुजरी की गायों को अगवा कर ले जाने पर कुंवर तेजपाल ने गायों की रक्षार्थ लूटेरों से युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय रास्ते में जलते हुए नाग को बचाने पर नाग देवता क्रोधित होकर कुंवर तेजपाल को शापित होना पड़ा था। परिस्थितिवश कुंवर तेजपाल ने नाग देवता से गूजरी की गायों की रक्षा उपरान्त नाग देवता की बाम्बी पर आकर दंश झेलने का वचन दिया। गो रक्षा निमित उनके इस शौर्य पूर्ण सुकृत्य से वीरवर तेजाजी पर मानस की यह पंक्तियाँ - ‘‘गो द्विज धेनु देव हितकारी, कृपा सिन्धु मानस तनधारी’’ सटीक प्रमाणित होती है व उन्हें कलियुग में अवतारी देव के रूप में इतिहासकारों ने प्रतिष्ठित किया है। लूटेरों से युद्ध कर कुंवर तेजपाल ने गायों को बचाया तथा अपने द्वारा नाग देवता को दिये गये वचन के अनुरूप उसी स्थान पर गये जहां नाग देवता को जलने से बचाया था। कुंवर तेजपाल युद्ध में बुरी तरह से घायल हो गये थे। शरीर का कोई अंग ऐसा नहीं था, जो सुरक्षित हो। तब नाग देवता ने डसने से मना कर दिया, तब कुंवर तेजपाल ने नाग देवता से कहा कि ‘‘मेरी जीभ अखण्ड है और उस पर किसी प्रकार को कोई घाव नहीं है।’’ मैं अपनी जीभ पर आपका दंश झेल सकता हूँ। तब नाग देवता ने कुंवर तेजपाल के भाले पर चढ़कर उनकी जीभ पर डसा। सर्पदंश को अपनी जिह्वा पर झेला व अपने प्राणों की बलि दी। इस प्रकार प्रण को रखकर ‘‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाई’’ की उक्ति को चरितार्थ कर प्रण वीर कहलाये। अपना जीवन गायों की रक्षार्थ बलिदान करने के कारण ही कालान्तर में कुंवर तेजपाल लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध हुए और आज आम जन वीर तेजाजी को श्रद्धा के साथ याद करते हैं। यद्यपि तेजाजी की जन्मस्थली नागौर - जोधपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर नागौर से 20 किलोमीटर दूर खरनाल है, तथापि उनकी कर्मस्थली खरनाल से लेकर मारवाड़ मूण्डवा तक रही, जहां वर्तमान में वीर तेजा महिला शिक्षण एवं शोध संस्थान स्थापित है। तेजाजी की कर्मस्थली होने के कारण ही इस संस्थान परिसर का नाम तेजास्थली रखा गया है। संस्थान के प्रागैतिहासिक इतिहास एवं प्रविवरण प्रकाशन के प्रस्तावित प्राक्कथन में संस्थान प्रवर्तक एवं संस्थापक परम श्रद्धेय स्व. श्री भँवरसिंहजी डांगावास के प्रमुख पाश्र्व श्रेष्ठिवर्य सहयोगी श्री आर. एस. घटियाला (आइ.ए.एस.), पूर्व विधायक श्री रामदेवजी बरणगाँव, पूर्व विधायक श्री महारामजी चैधरी सिणोद, श्री रामकरणजी बाज्या से.नि. तहसीलदार मारवाड़-मूण्डवा, श्री पुरखारामजी मिर्धा, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी एवं सुश्री कमल केसकर, पूर्व प्रशासक संस्थान एवं से. नि. संयुक्त निदेशक ‘‘माध्यमिक शिक्षा’’ आदि प्रबुद्ध महामनाओं के शुभ नाम उनके द्वारा तेजास्थली की स्थापना निमित तन-मन-धन, मन-कर्म-वचन एवं वाचा-मनसा-कर्मणा स्वरूप सतत-सार्थक-सद्प्रयासों के लिये संस्थान के इतिहास में शाश्वत रूप से स्वर्णिम अक्षरों में स्थायी रूपेण अंकित रहेंगें।
वीर तेजा महिला शिक्षण एवं शोध संस्थान की स्थापना स्वर्गीय श्री भँवरसिंह डांगावास ने प्रबुद्धजनों के सहयोग से 1996-97 (पंजीयन क्रमांक - 59/नागौर/1996-97, दिनाँक 05.11.96) में की। इस संस्थान की स्थापना के पीछे श्री डांगावास का उद्देश्य आस-पास की सभी जाति, धर्म की छात्राओं को बिना लाभ के शिक्षित करना था। वर्मतान में 375 बीघा भूमि संस्थान के निजी स्वामित्व में है। (भूमि आवंटन क्रमांक - एफ/1211 राजस्व/97/2306 दिनाँक 22 अप्रेल 1997) तथा 90 बीघा भूमि आरक्षित श्रेणी में है। जो भविष्य में विस्तार हेतु काम में ली जा सकती है। संस्थान सड़क मार्ग व रेलमार्ग दोनों से जुड़ा हुआ है। संस्थान का नजदीकी स्टेशन मारवाड़ मूण्डवा है जो यहां सं 7 किलोमीटर दूर स्थित है। मारवाड़ मूण्डवा, बीकानेर-नागौर-अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 89 से भी जुड़ा हुआ है। मेड़ता सिटी से मूण्डवा राज्य उच्च मार्ग सं. 39 संस्थान परिसर के आगे से होकर निकलता है। तेजास्थली नागौर जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर तथा मेड़ता रोड़ से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
वीर तेजा महिला शिक्षण एवं शोध संस्थान के उद्देश्य
01. बालिकाओं को विद्यालयों और महाविद्यालयों स्तर की संस्कार युक्त व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना।
02. राष्ट्र स्तरीय मानकों के समतुल्य उच्च प्रतिष्ठित महिला शिक्षा केन्द्र की स्थापना करना।
03. शुद्ध-सात्विक-स्वस्थ एवं सुरक्षित छात्रावासीय सुख सुविधाएं उपलब्ध कराना। जहां छात्राएं गरूकुल पद्धति के अनुरूप
संस्थान को घर से दूर अपना घर समझे।
04. गरीब, शहरी व ग्रामीण छात्राओं को बिना जाति, धर्म, वर्ग व शैक्षिक स्तरभेद के शिक्षा से वंचित वर्ग की बालिकाओं को
शिक्षा की परिधि में लाना।
05. ड्राॅप आउट्स की विलगन दर को कम करना व विद्यालय व महाविद्यालय शिक्षार्थ छात्राओं को उच्च शिक्षा से जोड़ना।
06. संस्थान में उत्तरोत्तर नवीन उच्च शैक्षिक, प्रशैक्षिक, व्यावसायिक, तकनीकी एवं सूचना प्रौद्यिगिकी आदि पाठ्यक्रमों को
संचालित करना।
07. संस्थान के नैसर्गिक परिवेशको शान्त, सुखद, सौहार्दपूर्ण व शिक्षणोपयोगी बनाना।
08. बालिका शिक्षा संवर्धन, महिला सशक्तिकरण व सम्बलन की दिशा में माननीय प्रधानमंत्री जी के ‘‘बेटी बचाओ, बेटी
पढ़ाओ’’ के अभियान को सफल बनाना।
09. संस्थान के संस्थापकों, निर्माताओं व प्रबन्धन का उद्देश्य नो प्रोफिट माॅटिव (छव् च्त्व्थ्प्ज् डव्ज्प्टम्) अर्थात् बिना लाभ
के पाठ्यक्रमों का संचालन करना है।